** द्रोणपर्व (महाभारत का सातवाँ पर्व)** महाभारत का **सातवाँ पर्व ‘द्रोणपर्व’** कहलाता है। इसमें कुल **170 अध्याय** और लगभग **8909 श्लोक** हैं। भीष्मपर्व में भीष्म पितामह के शरशय्या पर चले जाने के बाद कुरु सेना का सेनापति **द्रोणाचार्य** बनाए जाते हैं। इस पर्व में युद्ध के ग्यारहवें दिन से लेकर पंद्रहवें दिन तक का वर्णन है। --- ### 1. द्रोणपर्व का नामकरण इस पर्व का नाम **द्रोणाचार्य** के नाम पर पड़ा क्योंकि इन पाँच दिनों तक वे ही कौरव सेना के प्रधान सेनापति थे। उनकी युद्धनीति, पराक्रम और अंत में मृत्यु तक का वर्णन इसमें आता है। --- ### 2. प्रमुख घटनाएँ 1. **द्रोणाचार्य का सेनापतित्व** – भीष्म के गिरने के बाद कौरव पक्ष निरुत्साहित हो जाता है। तब द्रोणाचार्य को सेनापति नियुक्त किया जाता है। 2. **द्रोण की योजनाएँ** – द्रोणाचार्य अजेय योद्धा थे। उन्होंने चक्रव्यूह जैसी जटिल युद्धरचना बनाई। इसी चक्रव्यूह में प्रवेश कर **अभिमन्यु** ने महान वीरता दिखाई, किंतु अंततः वीरगति को प्राप्त हुए। 3. **अभिमन्यु वध** – पांडवपुत्र अभिमन्यु (अर्जुन का पुत्र) को सात महायोद्धाओं ने मिलकर घेर लिया और अनुचित रीति से उसका वध किया। यह घटना पूरे महाभारत युद्ध की सबसे करुण और मार्मिक घटनाओं में से एक है। 4. **घोर युद्ध और प्रतिशोध** – अभिमन्यु के वध से पांडव पक्ष शोकाकुल और क्रोधित हो जाता है। विशेषकर अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि अगले दिन वह जयद्रथ का वध करेगा, अन्यथा अग्नि में प्रवेश करेगा। 5. **जयद्रथ वध** – अर्जुन ने श्रीकृष्ण की सहायता से सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध किया। यह द्रोणपर्व का चरम प्रसंग है। 6. **द्रोण की मृत्यु** – अंततः द्रोणाचार्य अश्वत्थामा के नाम पर असत्य समाचार (कि वह मारा गया) सुनकर शोकग्रस्त हो जाते हैं। उन्होंने शस्त्र त्याग दिया और ध्यानस्थ होकर बैठ गए। उस स्थिति में द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। --- ### 3. महत्व - **रणनीतिक दृष्टि से** – इस पर्व में चक्रव्यूह, पद्मव्यूह आदि की चर्चा होती है, जो युद्धकला का अनूठा उदाहरण है। - **नैतिक दृष्टि से** – अभिमन्यु के बलिदान से यह शिक्षा मिलती है कि अधर्म और छल से विजय स्थायी नहीं होती। - **आध्यात्मिक दृष्टि से** – द्रोण का अंत यह दर्शाता है कि आसक्ति और मोह के कारण महान विद्वान भी पतन को प्राप्त होते हैं। --- ### 4. मुख्य बिंदु (संक्षेप में) - भीष्म के बाद द्रोण सेनापति बने। - चक्रव्यूह में अभिमन्यु का शौर्य और वध। - अर्जुन की जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा और उसका सफल होना। - असत्य समाचार के कारण द्रोणाचार्य का शस्त्रत्याग और वध। --- ### 5. निष्कर्ष **द्रोणपर्व** महाभारत युद्ध की सबसे करुण और निर्णायक घटनाओं का पर्व है। इसमें गुरु और शिष्य, धर्म और अधर्म, वीरता और छल, सबका गहरा समागम दिखाई देता है। अभिमन्यु का बलिदान और द्रोण का अंत इस पर्व को अत्यंत स्मरणीय बना देते हैं।